बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र
प्रश्न- "वस्त्र तथा वस्त्र-विज्ञान के अध्ययन का दैनिक जीवन में महत्व" इस विषय पर एक लघु निबन्ध लिखिए।
उत्तर -
एक गृहिणी को वस्त्र-विज्ञान का ज्ञान अति आवश्यक है। घर के वस्त्रों की खरीददारी प्रायः गृहिणी के जिम्मे होती है। वही घर में बच्चों, युवा व्यक्तियों व वृद्धों सभी के लिए उनकी आवश्यकता व इच्छानुसार वस्त्रों का चयन करती है। गृह-सज्जा के लिए प्रयुक्त पर्दे, सोफा कवर्स व कालीन आदि की भी उसे खरीददारी करनी पड़ती है इसके साथ-साथ उसे वस्त्रों की धुलाई, सफाई, रंगाई व सरंक्षण का कार्य भी करना पड़ता है। उसकी थोड़ी-सी भी असावधानी से बहुमूल्य वस्त्र नष्ट हो सकते हैं। वस्त्र-विज्ञान का ज्ञान होने से वस्त्रों के चयन में गृहिणी को सरलता रहती है। जब तक वस्त्र का समुचित ज्ञान गृहिणी को नहीं है तो वह समय-समय पर सही व सुनिश्चित निर्णय नहीं ले पायेगी।
आज की छात्राएँ ही कल की गृहिणी होंगी। अतः गृह-विज्ञान से सम्बन्धित इस विज्ञान का अध्ययन कराना उनके लिए नितान्त आवश्यक है। इसके ज्ञान होने से छात्रायें वस्त्रों की खरीददारी, प्रयोग, सफाई, देखरेख व संरक्षण में धोखा नहीं खा सकतीं। वस्त्र-विज्ञान का ज्ञान गृहिणी को वस्त्र परखने की क्षमता भी प्रदान करता है। मिलावटी और मिश्रित वस्त्रों को पहचानने की क्षमता वस्त्र-विज्ञान के अध्ययन के फलस्वरूप ही प्राप्त होती है। वस्त्र की भी उचित देखभाल व संरक्षण होते रहने से उनका जीवन दीर्घायु वाला हो जाता है तथा वस्त्र अपने मूल्य की उचित कीमत चुका देते हैं।
वस्त्र-विज्ञान के अध्ययन का महत्व
वस्त्र-विज्ञान का ज्ञान गृहिणी तथा एक सामान्य उपभोक्ता दोनों ही के लिए महत्वपूर्ण है।
होलेन सैडलर महोदय के अनुसार, “This is for consumer, not average consumer,but indicated consumer, who, when they purchase textile items what to know, what to expect in fabric performance and why fabric perform as they do."
भारतीय समाज में परम्परा से वस्त्रों की खरीद-फरोख्त, वस्त्रों की देखभाल, वस्त्रों का घर की सजावट में उपयोग, वस्त्रों की धुलाई एवं संग्रह आदि का कार्य गृहिणियों द्वारा ही सम्पादित किया जाता है। ऐसी स्थिति में वस्त्र-विज्ञान का अध्ययन गृहिणियों के लिए अधिक महत्वपूर्ण एवं आवश्यक माना जाता है। आज की छात्रायें कल गृहिणियाँ बनेंगी—इस दृष्टि से वस्त्र-विज्ञान के अध्ययन का उनके लिए महत्व और अधिक बढ़ जाता है। निम्नांकित बिन्दुओं के द्वारा गृहिणियों के लिए वस्त्र-विज्ञान के महत्व को स्पष्ट किया जा सकता है—
(i) वस्त्रों के निर्माण सम्बन्धी जानकारी वस्त्रों के निर्माण की पूरी प्रक्रिया का अध्ययन वस्त्र-विज्ञान में किया जाता है। कोई भी गृहिणी इसके अध्ययन से वस्त्र निर्माण में प्रयुक्त होने वाले तन्तु, धागे तथा वस्त्रों की परिसज्जा आदि का ज्ञान भली-भाँति प्राप्त कर सकती है। इससे मनुष्य में वस्त्र को परखने की क्षमता का विकास होता है।
(ii) वस्त्र की विशेषताओं को जानना -वस्त्र-विज्ञान के अध्ययन से गृहिणियाँ विभिन्न वस्त्रों की विशेषताओं से सरलता से परिचित हो सकती हैं। कुछ वस्त्र अधिक मजबूत और टिकाऊ होते हैं, जबकि कुछ जल्दी फटने तथा घिस जाने वाले होते हैं। कुछ वस्त्रों का रंग पक्का होता है, जबकि कुछ वस्त्रों का रंग जरा सा धोने से ही फीका पड़ जाता है। इस प्रकार वस्त्र विषयक बहुत-सा ज्ञान वस्त्र-विज्ञान के अध्ययन से हो जाता है।
(iii) वस्त्रों के महत्व को समझना – वस्त्रों का मनुष्य के जीवन में बहुमुखी महत्व है। वस्त्र-विज्ञान में वस्त्रों के इसी बहुमुखी महत्व का अध्ययन किया जाता है। इस विज्ञान के अध्ययन से गृहिणियाँ वस्त्रों के सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक महत्व से भली-भाँति अवगत हो जाती हैं।
(iv) वस्त्रों के रख-रखाव का ज्ञान-वस्त्र-विज्ञान में वस्त्रों के रख-रखाव, उनकी सुरक्षा एवं संग्रह के वैज्ञानिक तरीकों का अध्ययन किया जाता है। वस्त्रों की सुरक्षा एवं उनके रख-रखाव की पूरी जिम्मेदारी गृहिणी की ही होती है, अतः यदि गृहिणी को वस्त्र-विज्ञान का समुचित ज्ञान है तो वह अपनी इस जिम्मेदारी को भली-भाँति निभा सकेंगी।
(v) विभिन्न प्रयोजनों हेतु वस्त्रों का चुनाव – किस प्रयोजन के लिए कौन-सा वस्त्र उपयोगी होगा इस बात की वैज्ञानिक जानकारी वस्त्र-विज्ञान के अन्तर्गत ही दी जाती है। प्रत्येक गृहिणी को विभिन्न प्रयोजन हेतु समय-समय पर वस्त्र खरीदने की आवश्यकता पड़ती ही रहती है, अतः यदि गृहिणी को वस्त्र-विज्ञान का समुचित ज्ञान होगा तो वह अपने विवेक से प्रत्येक प्रयोजन के लिए उपयुक्त वस्त्रों की खरीद फरोख्त कर सकेगी।
(vi) उचित वेश-भूषा का निर्धारण-वस्त्र-विज्ञान के उचित ज्ञान के द्वारा गृहिणी परिवार के प्रत्येक सदस्य के लिए उचित वेशभूषा का सरलता से निर्धारण कर सकती हैं। बच्चों, युवक-युवतियों, वयस्कों, एवं वृद्धों के लिए अलग-अलग प्रकार के वस्त्रों की आवश्यकता होती है। इसी प्रकार दुबले-पतले एवं भारी भरकम शरीर वाले व्यक्तियों के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के वस्त्र आवश्यक होते हैं। इस प्रकार परिवार के प्रत्येक सदस्य की वेशभूषा के निर्धारण में गृहिणी को वस्त्र-विज्ञान से ही सहायता मिलती है।
इस प्रकार उपर्युक्त विवरण के आधार पर निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि वस्त्र-विज्ञान का अध्ययन सिर्फ गृहिणियों के लिए ही नहीं वरन् समाज के प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक है। यह विज्ञान व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
प्रश्न- वस्त्रों का मानव जीवन में क्या महत्व है? इसके सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्व की विवेचना कीजिए।
उत्तर -
वस्त्र विज्ञान आज सबसे महत्वपूर्ण व विकसित होता हुआ विज्ञान है। वस्त्र विज्ञान के अन्तर्गत हम विभिन्न वस्त्रों तथा उनकी निर्माण प्रक्रिया से सम्बद्ध सामग्रियों का अध्ययन करते हैं। प्रत्येक व्यक्ति चाहे जाग्रतावस्था में हो अथवा सुषुप्तावस्था में, काम करता हो या व्यर्थ बैठा हो अथवा खेलता हो, रोगी हो या स्वस्थ, अमीर हो या गरीब, हर समय वस्त्रों का प्रयोग करता है। लोग वस्त्रों को कई कारणों से पहनते हैं। शरीर को गर्म रखने के लिए, भौतिक तत्वों—जैसे हवा, पानी, अग्नि आदि से रक्षा करने के लिए, अपने पेशे एवं काम से सम्बद्ध संकटों से बचाव करने के लिए, अपने को अधिक आकर्षक बनाने के लिए, अपनी सामाजिक स्थिति एवं सम्पदा को प्रदर्शित करने तथा अभिनिर्धारण (Identification) जैसे— पुलिसमैन, संन्यासी, महंत, पादरी, नेवी, एयरफोर्स, फायरमैन आदि के लिए वस्त्रों का प्रयोग किया जाता है।
वस्त्र एवं परिधान का महत्व
वस्त्र एवं परिधान का महत्व इस बात से सहज ही समझा जा सकता है कि यदि जापान की किसी सड़क पर घूम रहे हैं तो हम परिधान के माध्यम से ही दूर से आते हुए अपने देश के किसी व्यक्ति को पहचान लेते हैं और अपनत्व की भावना के सुख के आनन्द से अभिभूत हो उठते हैं। वैसे तो यह भावनात्मक पक्ष की बात है, परन्तु वास्तविकता यह है कि वस्त्र और व्यक्ति का रिश्ता कभी न टूटने वाला होता है।
वस्त्रों का उपयोग घरों में विभिन्न रूप में-वस्त्र सभी घरों में प्रयोग किए जाते हैं। शरीर की रक्षा और तन ढकने के अतिरिक्त घरेलू कार्यों में भी वस्त्रों का प्रयोग होता है। फर्श, जमीन, सोफा, कुर्सी, परदे तथा ड्रेपरी, बिछावन, खोल, गिलाफ आदि सभी के लिए वस्त्रों की आवश्यकता है। स्वच्छता-सफाई, नहाने-धोने आदि के कामों में वस्त्र लगते हैं। शरीर पोंछने के लिए तौलिया तथा अन्य वस्तुएँ पोंछने के लिए झाड़न आदि का प्रयोग किया जाता है। सजावट तथा सज्जा भी वस्त्रों से होती है तथा परदों, ड्रेपरी आदि से सजावट के अतिरिक्त एकांतता (Privacy) की रक्षा का भी काम निकलता है। कुशन, सोफासेट, कवर आदि पर वस्त्रों से शोभा, सजावट, सौन्दर्य तथा कलात्मकता की वृद्धि तो होती ही है, साथ ही उनकी उपयोगिता भी बढ़ जाती है और रक्षा भी होती है। कमरे, स्नानागार, रसोईघर,
भोजनकक्ष आदि की सजावट में भी वस्त्र प्रयुक्त होते हैं। टेबल पर मेजपोश बिछाया जाता है। भोजन कक्ष की मेज पर टेबल-सर्विस के लिए, आकर्षक पृष्ठभूमि बनाने के लिए, व्यर्थ की ध्वनि से बचाव तथा स्वच्छता के लिए, मेजपोश के अतिरिक्त सर्वोयट (Serviette) टेबल, नेपकीन आदि का भी प्रयोग होता है। मेजपोश तथा विभिन्न प्रकार के खोल एवं कवर में मेज या जिन पर वस्त्र बिछाया या ढँका जाता है, सुरक्षित भी रहते हैं।
विभिन्न उद्योगों में वस्त्रों का प्रयोग-विभिन्न उद्योगों में भी वस्त्रों का प्रयोग होता है। टेप, बेल्ट, ध्वनि शोषित करने वाले पैड, पैराशूट, मोटर-गाड़ी, टायर, लिनोलियम मैकिनटौश, फर्श आवरण आदि में वस्त्र प्रयुक्त होते हैं। मिलिटरी, हवाई जहाज, अन्तरिक्ष यात्रियों की पोशाक आदि के लिए विशेष प्रकार के वस्त्रों का प्रयोग किया जाता है।. जल-अभेद्य (Water-Proof) तथा अज्वलनशील (Fireproof) वस्त्र विभिन्न प्रकार की उपयोगिताओं की दृष्टि में रखकर प्रयोग किये जाते हैं। अस्पतालों में ऑपरेशन से सम्बद्ध पट्टियों आदि में विशेष प्रकार से निर्मित एक एण्टिसेप्टिक वस्त्रों का प्रयोग किया जाता है। शल्य-चिकित्सा में कई स्थानों पर विभिन्न प्रयोजनों के लिए विशेष प्रकार के वस्त्रों का प्रयोग होता है। कुछ तो ऐसे होते हैं जिनका शरीर के अंगों के अतिरिक्त संबल देने के लिए प्रयोग किया जाता है। तात्पर्य यह है कि मानव-जीवन के विभिन्न कार्यकलापों से वस्त्रों का घनिष्ठ सम्बन्ध है। इससे हम अपने को न पृथक् समझ सकते हैं, न ही इनसे अलग रह सकते हैं। वस्त्रों का सभी से, सब समय का नाता है। यही कारण है कि वस्त्र उत्पादन संसार के सभी देशों में एक महत्वपूर्ण उद्योग है। विश्व भर में प्रत्येक स्थान में, जहाँ जैसी अपक्व सामग्री (Raw material) प्राप्त हो पा रही है, वहाँ उसी के वस्त्र बनाए जाते हैं। यह तेजी से बढ़ता हुआ महत्वपूर्ण उद्योग है।
मानव का वस्त्रों से सदैव सम्पर्क-आज ही नहीं, मानव का वस्त्रों से सदैव सम्पर्क रहा है। सत्य तो यह है कि मानव-सभ्यता और संस्कृति का इतिहास, वस्त्रोत्पादन-कला के उद्भव एवं प्रगति से सतत् सम्बद्ध रहता आया है। वस्त्रों का सामाजिक जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है, अतः वस्त्र-विज्ञान का अध्ययन सभी के लिए अनिवार्य है। वस्त्र मानव सभ्यता और संस्कृति के सूचक हैं। आज से ही नहीं, प्रारम्भिक काल से ही मानव तन ढकने का प्रयत्न करता रहा है। इस काम के लिए उसने आदिम युग में घास-फूस, पेड़-पौधे, पत्ते-छाल तथा मृत पशुओं की खाल आदि का प्रयोग किया है। परन्तु मानव इतने से कब सन्तुष्ट होने वाला था। उसकी तीव्र बुद्धि ने वस्त्रों की उत्पत्ति के साधन एवं वस्त्रों को बुनकर तैयार करने की कला खोज निकाली। तब से अब तक वस्त्र-निर्माण कला में उत्तरोत्तर विकास होता रहा तथा इस दिशा में मनुष्य अनवरत् रूप से प्रयत्नशील रहा।
बनी हुई चटाई तथा बटी हुई रस्सियों से उसे अपनी बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सफलता मिली। सामानों को ले आने, ले जाने, शिकार को बाँधकर लाने, शिकार पकड़ने और फँसाने आदि अनेक कामों के लिए उसने तिनकों तथा नरम टहनियों को गूँथकर और चमड़े की पट्टियों से रस्सियाँ तथा डोरियाँ बनाई। वास्तव में इन्हें निर्मित करने की प्रक्रिया ही वस्त्र-निर्माण-कला की प्रेरणा बनी।
इस कला में दिनानुदिन उन्नति होती गई और इनसे चौड़ी पट्टियाँ बनाकर तन ढँकने के लिए प्रारम्भिक प्रयास होने लगे। इसके साथ-साथ मानव ने वस्त्रोपयोगी रेशों की खोज की। - उस समय मानव ने जिन रेशों की खोज की, वे सभी प्रकृति प्रदत्त थे। पेड़-पौधे तथा पशुओं के बालों से प्राप्त रेशे ही वास्तव में उस समय वस्त्रों के निर्माण में काम आते थे, यद्यपि वस्त्रों का स्वरूप वह नहीं था जो आज है।
अति प्राचीन काल में, जिन देशों की सभ्यता और संस्कृति विकसित थी वहाँ सुन्दर वस्त्रों का निर्माण होने लगा था। मिस्र, यूनान तथा भारत सुन्दर वस्त्रों के निर्माण के लिए प्रसिद्ध थे। इसका प्रमाण ऐतिहासिक अवशेषों में मिलता है।
वस्त्रों का जीवन पर प्रभाव-वस्त्र, जीवन को सभी वस्तुओं से अधिक प्रभावित करते हैं। इनके उचित चयन और उपयोग से व्यक्ति का स्वरूप बदल जाता है। शारीरिक अवगुणों को दबाकर व्यक्तित्व को सुन्दर बनाने में योगदान सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। शरीर के अतिरिक्त वस्तुओं का सौन्दर्य भी इनके उचित प्रयोग से द्विगुणित हो जाता है। गृह-सज्जा हो, मोटरगाड़ी हो, या कोई क्रय-विक्रय केन्द्र या दुकान-बाजार हो, सभी का रूप रंग-बिरंगे वस्त्रों में खिल उठता है। आन्तरिक एवं बाह्य सज्जा-सभी में वस्त्रों का महत्वपूर्ण स्थान है। तात्पर्य यह है कि वस्त्रों का मानव-जीवन से अटूट सम्बन्ध है। अतः उनका विवेकपूर्ण चयन, उचित प्रयोग, सही देख-रेख तथा विधिवत् सुरक्षा एवं संचयन करने की कला से भी सभी को परिचित होना चाहिए। वस्त्र-विज्ञान एवं परिधान में वस्त्र के इन्हीं पहलुओं पर प्रकाश डाला जाता है। अतः निष्कर्ष यह निकलता है कि वस्त्र-विज्ञान का ज्ञान प्रत्येक व्यक्ति के लिए अनिवार्य है।
हर दिन, प्रत्येक वस्त्रों से सम्बन्धित, कुछ-न-कुछ निर्णय लेता है। चाहे वह "आज क्या पहना जाए" तक ही सीमित हो अथवा घरेलू बजट में से एक बड़ी रकम की व्यवस्था करके एक नए कालीन को खरीदने के बारे में क्यों न हो, परन्तु जाने-अन्जाने हम वस्त्रों की कार्यक्षमता, टिकाऊपन, आकर्षण, सुन्दरता आदि से सम्बन्धित निर्णय प्रतिदिन लेते हैं। वस्त्रों को समझना घरेलू स्तर पर हो अथवा व्यापारिक स्तर पर, परन्तु निर्णय लेने की कुंजी उसे ज्ञान में छिपी है जो रेशों, धागों, कपड़ों और उनकी परिसज्जा से सम्बन्धित है तथा उन तरीकों से जिनसे ये आपस में अन्तर्सम्बन्धित रहते हैं क्योंकि इन्हीं पर इनका आचरण और निष्पादन आधृत है।
वस्त्रों के चयन में गृहिणी की भूमिका-घर के वस्त्रों की खरीददारी प्रायः गृहिणी को ही करनी पड़ती है। बच्चे, युवा, प्रौढ़, वृद्ध सभी आयु के व्यक्तियों की अभिरुचि के अनुकूल वस्त्रों का चयन करने का भार गृहिणी के कंधे पर रहता है। तरह-तरह के कामों-जैसे-परदे, कुशन, मेजपोश, तौलिया, झाड़न, चादर आदि के लिए कपड़ा का प्रबन्ध करना गृहिणी का ही काम है। इसके अतिरिक्त इन वस्त्रों की धुलाई, उचित देख-रेख तथा सुरक्षा भी गृहिणी को ही करनी पड़ती है। गृहिणी की थोड़ी-सी अज्ञानता से बहुमूल्य वस्त्र असमय ही नष्ट हो सकते हैं। इन सब कारणों से स्पष्ट है कि वस्त्र-विज्ञान गृह विज्ञान का एक अनिवार्य अंग है और गृहिणी के लिए इसकी पूरी जानकारी होना जरूरी है।
वस्त्र-विज्ञान के समुचित ज्ञान से ही वस्त्रों के चयन-सम्बन्धी निर्णय में गृहिणी को सहायता मिलती है। अमुक वस्त्र पहनने के लिए ठीक होगा अथवा पहनावे के लिए, गर्मी के लिए ठीक होगा अथवा जाड़े के लिए, कौन-से रंग पक्के रहेंगे और कौन-सा वस्त्र बहुत समय तक काम आ सकेगा, वस्त्र की बुनाई कैसी है, किस प्रकार की बुनाई वाला वस्त्र. अधिक दिन तक टिकेगा, वस्त्र पर दी गई परिसज्जा तथा परिष्कृति किस प्रकार की है आदि अनेक बातें हैं जिनके सम्बन्ध में विवेकपूर्ण निर्णय लेना गृहिणी का काम है। इसके अतिरिक्त वस्त्र की किस्म के अनुसार कौन-सी धुलाई की विधि तथा कौन-सा शोधक पदार्थ सबसे उत्तम रहेगा, किस वस्त्र पर कितनी गर्म इस्तरी की जाए, वस्त्रों का संरक्षण, सुरक्षा तथा देख-रेख कैसे की जाए आदि सभी बातों पर विवेकपूर्ण ढंग से निर्णय तभी लिया जा सकता है जब गृहिणी को वस्त्र-विज्ञान का समुचित ज्ञान हो। निष्कर्ष यह है कि वस्त्र-विज्ञान का ज्ञान गृहिणी के लिए हर तरह से लाभकारी होता है। यह विषय ऐसी सभी बातों से अवगत कराता है जिससे गृहिणी को अपनी एक महत्वपूर्ण दैनिक समस्या को सही ढंग से सुलझाने में सहायता मिलती है।
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- प्रश्न- वस्त्रों के चयन को प्रभावित करने वाला कारक फैशन भी है। स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- राजस्थान के परम्परागत वस्त्रों और कढ़ाइयों को विस्तार से समझाइये।
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- प्रश्न- औरंगाबाद के ब्रोकेड वस्त्रों पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- बांधनी से आप क्या समझते हैं ?
- प्रश्न- ढाका की साड़ियों के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- चंदेरी की साड़ियाँ क्यों प्रसिद्ध हैं?
- प्रश्न- उड़ीसा के बंधास वस्त्र के बारे में लिखिए।
- प्रश्न- ढाका की मलमल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- उड़ीसा के इकत वस्त्र पर टिप्पणी लिखें।
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- प्रश्न- कढ़ाई कला के लिए प्रसिद्ध नगरों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- कर्नाटक की 'कसूती' कढ़ाई पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- पंजाब की फुलकारी कशीदाकारी एवं बाग पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
- प्रश्न- टिप्पणी लिखिए: (i) बंगाल की कांथा कढ़ाई (ii) कश्मीर की कशीदाकारी।
- प्रश्न- कश्मीर की कशीदाकारी के अन्तर्गत शॉल, ढाका की मलमल व साड़ी और चंदेरी की साड़ी पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- कच्छ, काठियावाड़ की कढ़ाई की क्या-क्या विशेषताएँ हैं? समझाइए।
- प्रश्न- "मणिपुर का कशीदा" पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
- प्रश्न- हिमाचल प्रदेश की चम्बा कढ़ाई का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतवर्ष की प्रसिद्ध परम्परागत कढ़ाइयाँ कौन-सी हैं?
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- प्रश्न- शीशेदार फुलकारी क्या हैं?
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- प्रश्न- कढ़ाई में प्रयुक्त होने वाले टाँकों का महत्व लिखिए।
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- प्रश्न- उत्तर प्रदेश की चिकन कढ़ाई का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जरदोजी पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- बिहार की सुजानी कढ़ाई पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- सुजानी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- खटवा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।